शुक्रवार, 24 अक्तूबर 2014

तृतीय प्रसंग - न्याय का सिहांसन ( भाग दो)

सदन में गहमागहमी मच गयी। खुसर पुसर की ध्वनि , शोर में बदल गयी।
" मै इस प्रस्ताव पर सदन की राय जानना चाहूँगा।" महराज ने ऊँचे स्वर में कहा।

- क्षमा करे महराज। परन्तु वह सिहांसन हम नही ला सकते। हम सब जानते है की विक्रमादित्य देवी के उपासक थे। अतः सिहांसन की स्थापना साम्प्रदायिक है। राज्य में दंगे भड़क सकते है।

- और महराज सुनवाई का प्रोसीजर होगा क्या। जमानत वाली व्यवस्था के बगैर हम किसी न्याय पर कैसे भरोसा कर सकते है।

    इस तरह से एक एक कर के सबने लोकतान्त्रिक रूप से  सिहांसन को नकार दिया।

यह देख वृद्ध मंत्री क्रोधित हो गया। उसने राजा को आन्दोलन करने की धमकी दी। राजा कुछ कहने वाला था तभी सेक्रेटरी ने कहा की राजन सोच लो सिहांसन आया तो सब अंदर हो जायेंगे। सो राजा चुप हो गयी। वृद्ध मंत्री चले गये। राजा मुस्कुराये । सभी मंत्री मुस्कुराये।

अगले दिन खबर आई की की वृद्ध मंत्री का हृदयघात से निधन हो गया। उसी टीले पर उनका अंतिम संस्कार किया । स्मारक बना। नाम रखा गया - न्याय घाट। सब निश्चिन्त हो गये। सिहांसन भी सुरक्षित और हम भी।

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