गुरुवार, 23 अक्तूबर 2014

तृतीय प्रसंग - न्याय का सिहांसन ( भाग एक )

राजा भोज के राज्य में सब सुखी थे | सभी सांसदो , नेताओ ने मिलकर एक ही पार्टी बना ली थी | सबका परसेंट फिक्स था | मीडिया और NGO का भी \ इसलिए कोई भी घोटाला उजागर नहीं होता था \ हर चुनाव में उम्मीदवार का हारना जितना सबकुछ तय था |इसलिए कोई टेंसन नहीं| सब निश्चिन्त थे |
      एक दिन की बात है | राजा भोज दरबार लगा के बैठे थे | चूँकि राजसभा थी इसलिए सभी मर्यादित व्यवहार कर रहे थे | दूसरी कोई सभा होती तो बात अलग थी |
  तभी कुछ सैनिक एक लड़के को पकड़ लाये |

ये कौन है - राजा ने गरज कर पूछा |

महराज ये लड़का चरवाहा है | पंचायत की जमीं पर गाय चराता है |वहां के एक टीले  पर बैठ न्याय करता है | लोगो को कहता है मैं न्याय करूंगा | सजा सुनाता है | सीधे शब्दों में कानून अपने हाथ में लेता है | गाँव वालो की शिकायत पर पकड़ कर ले आये | बहुत कहा इसे की 100  50 देकर छुट जा | पर नहीं माना हुजुर | अब बिना रिश्वत लिए किसीको छोड़ना भी तो बेईमानी होगी न हुजुर |

- ठीक है इसे ले जाओ | और देखो की मरे मत और ये भी चेक कर लो की दलित या माइनॉरिटी तो नहीं |

सैनिक तो चले गये पर राजा चिंतित हो गया | मंत्रियो ने कारण पूछा तो बोले - हमे लगता है की टीले के नीचे विक्रमादित्य का न्याय का सिंहासन है |

न्याय का सिहासन शब्द सुन कर पल हर का सन्नाटा छा गया |

फिर सबसे बुजुर्ग मंत्री खड़े होकर बोले - सभासदों , मुझे अच्छे से याद है | आज से 60 साल पहले जब राज्य की स्थापना हुई | तब हम सबने न्याय के सिद्धांत पर संविधान की रचना की |
      और जब समाज को पूर्ण न्याय देने की बात आई तो हमने इस सिहांसन की बहुत खोज करायी | पर हमे कुछ भी हासिल नहीं हुआ |फिर हमने न्याय की निति बनाई | जिसमे सिविल , डिस्ट्रिक्ट , सेसन , हाई , सुप्रीम और फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की | परन्तु आज न्याय मिलने में बहुत देरी है | अतः हमे वो सिहांसन प्राप्त करना चाहिए जिससे हमारी जनता को सही समय पर न्याय प्राप्त हो सके |

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