शनिवार, 18 अक्तूबर 2014

द्वितीय प्रसंग नचिकेता ( भाग एक )

नचिकेता के पिता वाजश्रवा एक गुरुकुल के कुलपति थे | पिछले कई पीढियों से यह गुरुकुल उनके परिवार की धरोहर थी | देश के दो केन्द्रीय मंत्री , आठ सांसद और अलग अलग विधानसभा के कई विधायक उनके ही गुरुकुल के शिष्य रहे थे | ये बात अलग है की उनमे से अधिकतर अनुशासन हीनता के कारण आश्रम से निकल दिए गये थे |
 मेधावी छात्रो में 12 15 अफसर सैकड़ो  डॉक्टर और  हजारो इंजिनियर ने  जिन्दगी के गुर सीखे थे |
 आज वाजश्रवा के यहाँ यज्ञ  है | ब्रम्हा को पाने के लिए ब्रम्हण यज्ञ | वो दूर दूर से आये ब्राम्हणों को एक एक करके सब कुछ दान कर रहे थे | ये देख नचिकेता खिन्न हुआ |
उसने पिता को टोका
- क्या आप सब कुछ दे देंगे ?

- हाँ |

- और मेरे लिए

-तुम्हारा ज्ञान तुम्हारी शिक्षा ही तुम्हारा धन है |

- पर कुछ तो रखो | इतना की रिश्वत न सही नौकरी की परीक्षा फीस भर सकूँ |

- तुममे मेधा है , कला है . नौकरी क्यों |

- करने के लिए तो मैं साम गन कर सकता हूँ पर ..| आपको कुछ छोड़ना चाहिए |

- मैं अपना सब कुछ दान कर दूंगा

- मुझे भी ?

- हाँ

- किसे ?

- जा मैं तुझे मृत्यु को देता हूँ

 और नचिकेता निकल गया | अपना बैग लैपटॉप और चार्जर लेकर | हाईवे तक पैदल आया | फिर लिफ्ट ले ली |

दो दिन बाद वो यम के घर पंहुचा |

क्रमशः ................................

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