शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

प्रस्तावना

मैंने उपनिषद नहीं पढ़े पर जिन किताबो से उपनिषद के बारे में जानकारी मिली वो बताती है की उपनिषद में वो कहानिया है जो संवाद देश काल या गूढार्थ में एक दर्शन लिए बैठा है | जो अव्यक्त है पर अभिव्यक्त है | मैंने अपने बडो से काफी कहानिया सुनी जिनमे दया प्रेम करुणा सच्चाई ईमानदारी अनुराग और इश्वर के बारे में बताया गया है \ पर मुझे दर्शन की समझ नहीं | पर जो दर्शन मैंने सवा अनुभव से पाया ही उन्हें कहानियो के पात्र में भरकर आपके सामने रख रहा हूँ | आशा ही की आपकी भावनाए आहत नहीं होगी  और आप इन कहानियो के दर्शन मनोभाव व्यंग्य और मेरे मन की पीड़ा तक पहुच सकेंगे |
नमो भगवत वत्सले 
कहानी अगले लेख से शुरू होगी |

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